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वह निर्धन व्यक्ति, जिसका चालचलन खराई है,
उस व्यक्ति से उत्तम है, जो कुटिल है और मूर्ख भी.
 
ज्ञान-रहित इच्छा निरर्थक होती है
तथा वह, जो किसी भी कार्य के लिए उतावली करता है, लक्ष्य प्राप्‍त नहीं कर पाता!
 
जब किसी व्यक्ति की मूर्खता के परिणामस्वरूप उसकी योजनाएं विफल हो जाती हैं,
तब उसके हृदय में याहवेह के प्रति क्रोध भड़क उठता है.
 
धन-संपत्ति अनेक नए मित्रों को आकर्षित करती है,
किंतु निर्धन व्यक्ति के मित्र उसे छोड़कर चले जाते हैं.
 
झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है,
तथा दंडित वह भी होगा, जो झूठा है.
 
उदार व्यक्ति का समर्थन अनेक व्यक्ति चाहते हैं,
और उस व्यक्ति के मित्र सभी हो जाते हैं, जो उपहार देने में उदार है.
 
निर्धन व्यक्ति तो अपने संबंधियों के लिए भी घृणा का पात्र हो जाता है.
उसके मित्र उससे कितने दूर हो जाते हैं!
वह उन्हें मनाता रह जाता है,
किंतु इसका उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
 
बुद्धि प्राप्‍त करना स्वयं से प्रेम करना है;
तथा ज्ञान को सुरक्षित रखना समृद्धि है.
 
झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है तथा जो झूठा है,
वह नष्ट हो जाएगा.
 
10 सुख से रहना मूर्ख को शोभा नहीं देता,
ठीक जिस प्रकार दास का शासकों पर शासन करना.
 
11 सद्बुद्धि मनुष्य को क्रोध पर नियंत्रण रखने योग्य बनाती है;
और जब वह अपराध को भुला देता है, उसकी प्रतिष्ठा होती है.
 
12 राजा का क्रोध सिंह के गरजने के समान होता है,
किंतु उसकी कृपा घास पर पड़ी ओस समान.
 
13 मूर्ख संतान पिता के विनाश का कारक होती है,
और झगड़ालू पत्नी नित
टपक रहे जल समान.
 
14 घर और संपत्ति पूर्वजों का धन होता है,
किंतु बुद्धिमती पत्नी याहवेह की ओर से प्राप्‍त होती है.
 
15 आलस्य का परिणाम होता है गहन नींद,
ढीला व्यक्ति भूखा रह जाता है.
 
16 वह, जो आदेशों को मानता है, अपने ही जीवन की रक्षा करता है,
किंतु जो अपने चालचलन के विषय में असावधान रहता है, मृत्यु अपना लेता है.
 
17 वह, जो निर्धनों के प्रति उदार मन का है, मानो याहवेह को ऋण देता है;
याहवेह उसे उत्तम प्रतिफल प्रदान करेंगे.
 
18 यथासंभव अपनी संतान पर अनुशासन रखो उसी में तुम्हारी आशा निहित है;
किंतु ताड़ना इस सीमा तक न की जाए, कि इसमें उसकी मृत्यु ही हो जाए.
 
19 अति क्रोधी व्यक्ति को इसका दंड भोगना होता है;
यदि तुम उसे दंड से बचाओगे तो तुम समस्त प्रक्रिया को दोहराते रहोगे.
 
20 परामर्श पर विचार करते रहो और निर्देश स्वीकार करो,
कि तुम उत्तरोत्तर बुद्धिमान होते जाओ.
 
21 मनुष्य के मन में अनेक-अनेक योजनाएं उत्पन्‍न होती रहती हैं,
किंतु अंततः याहवेह का उद्देश्य ही पूरा होता है.
 
22 मनुष्य में खराई की अपेक्षा की जाती है;
तथा झूठ बोलनेवाले की अपेक्षा निर्धन अधिक उत्तम है.
 
23 याहवेह के प्रति श्रद्धा ही जीवन का मार्ग है;
तथा जिस किसी में यह भय है, उसका ठिकाना सुखी रहता है, अनिष्ट उसको स्पर्श नहीं करता.
 
24 एक आलसी ऐसा भी होता है, जो अपना हाथ भोजन की थाली में डाल तो देता है;
किंतु आलस्य में भोजन को मुख तक नहीं ले जाता.
 
25 ज्ञान के ठट्ठा करनेवाले पर प्रहार करो कि सरल-साधारण व्यक्ति भी बुद्धिमान बन जाये;
विवेकशील व्यक्ति को डांटा करो कि उसका ज्ञान बढ़ सके.
 
26 जो व्यक्ति अपने पिता के प्रति हिंसक हो जाता तथा अपनी माता को घर से बाहर निकाल देता है,
ऐसी संतान है, जो परिवार पर लज्जा और निंदा ले आती है.
 
27 मेरे पुत्र, यदि तुम शिक्षाओं को सुनना छोड़ दो,
तो तुम ज्ञान के वचनों से दूर चले जाओगे.
 
28 कुटिल साक्षी न्याय का उपहास करता है,
और दुष्ट का मुख अपराध का समर्थन करता है.
 
29 ठट्ठा करनेवालों के लिए दंड निर्धारित है,
और मूर्ख की पीठ के लिए कोड़े हैं.