दानिएल
मुसन्निफ़ की पहचान
इस किताब के लिखने वाले के पीछे यह नाम दिया गया था। दानिएल की किताब बाबुल में एक इस्राईल से एक यहूदी जिलावतन बतौर उसके अपने वक़्त की मा — हसल या पैदावार थी। दानिएल नाम का मतलब है ख़ुदा मेरा मुनसिफ़ है किताब ख़ुद दलालत करती है कि दानिएल इस का मुसन्निफ़ था एक दो इबारते हैं 9:2; 10:2 दानिएल ने अपने तजुरबात और नबुव्वतें यहूदी जिलावत्नों के लिए बाबुल के दारूल खि़लाफ़े (राजधानी) में रहने के दौरान क़लमबंद किये जहां बादशाह के लिए उसकी खि़दमत ने मुआशिरे के ऊँचे तबक़े के लोगों या ओहदे दारों तक पहुंचने का मौक़ा अता किया। ख़ुदावन्द के लिए उसकी वफ़ादारी खि़दमत न सिर्फ़ अपने मुल्क और अपनी तहज़ीब में बेमिसल नहीं करती बल्कि नविश्तों के तमाम लोगों के दर्मियान भी उसको बेमिसल करार देती है।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के तस्नीफ़ की तारीख़ तक़रीबन 605 - 530 क़ब्ल मसीह के बीच है।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
बाबुल के तमाम यहूदी जिलावतन और बाद में तमाम कलाम के क़ारिईन।
असल मक़सूद
दानिएल की किताब दानिएल नबी के तमाम काररवाईयों, नबूवतों और रोयाओं को क़लम्बन्द करती हैं। दानिएल की किताब सिखाती हैं कि ख़ुदा उन सब के लिए वफ़ादार है जो उसके पीछे चलते हैं। इम्तिहान और मुख़ालिफ़ों की अकसरियत के बावजूद भी ईमान्दारों को ख़ुदा के लिए वफ़ादारी से खड़े होने की ज़रूरत है जब वह अपनी ज़मीनी नौकरी पर जाते हैं।
मौज़’अ
ख़ुदा की हुकूमत (फ़र्मा रवाई)।
बैरूनी ख़ाका
1. बड़ी मूरत की बाबत दानिएल का ख़्वाब की ताबीर को बताना — 1:1-2:49
2. सदरक, मीसक, और अब्दनजू का आग की भट्टी से निकाला जाना — 3:1-30
3. बादशाह नबुकदनेज़र का ख़्वाब — 4:1-37
4. दीवार पर उंगलियों का लिखा जाना और बर्बादी की बाबत दानिएल की नबुव्वत — 5:1-31
5. दानिएल शेरों की मान्द में — 6:1-28
6. चार खूनख़ार जानवरों का रोया — 7:1-28
7. 1 मेंढा, बकरा और छोटे सींग का रोया — 8:1-27
8. दानिएल की दुआ जो 70 साल में क़बूल हुई — 9:1-27
9. 1 आख़री जंग — ए — अज़ीम का रोया — 10:1-12:13
1
नबूकदनज़र की अदालत में दानिय्येल
1 शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम की सल्तनत के तीसरे साल में शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने येरूशलेम पर चढ़ाई करके उसका घिराव किया।
2 और ख़ुदावन्द ने शाह यहूदाह यहूयक़ीम को और ख़ुदा के घर के बा'ज़ बर्तनों को उसके हवाले कर दिया और उनको सिन'आर की सरज़मीन में अपने बुतख़ाने में ले गया, चुनाँचे उसने बर्तनों को अपने बुत के ख़ज़ाने में दाख़िल किया।
3 और बादशाह ने अपने ख़्वाजासराओं के सरदार असपनज़ को हुक्म किया कि बनी इस्राईल में से और बादशाह की नस्ल में से और शरीफ़ों में से लोगों को हाज़िर करे।
4 वह बे'ऐब जवान बल्कि खू़बसूरत और हिकमत में माहिर और हर तरह से 'अक़्लमन्द और 'आलिम हों, जिनमें ये लियाक़त हो कि शाही महल में खड़े रहें, और वह उनको क़सदियों के 'इल्म और उनकी ज़बान की ता'लीम दें।
5 और बादशाह ने उनके लिए शाही ख़ुराक में से और अपने पीने की मय में से रोज़ाना वज़ीफ़ा मुक़र्रर किया कि तीन साल तक उनकी परवरिश हो, ताकि इसके बाद वह बादशाह के सामने खड़े हो सकें।
6 और उनमें बनी यहूदाह में से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह थे।
7 और ख़्वाजासराओं के सरदार ने उनके नाम रख्खे; उसने दानीएल को बेल्तशज़र, हननियाह को सदरक, और मीसाएल को मीसक, और 'अज़रियाह को 'अबदनजू कहा।
8 लेकिन दानीएल ने अपने दिल में इरादा किया कि अपने आप को शाही खु़राक से और उसकी शराब से, जो वह पीता था, नापाक न करे; तब उसने ख़्वाजासराओं के सरदार से दरख़्वास्त की कि वह अपने आप को नापाक करने से मा'जू़र रखा जाए।
9 और ख़ुदा ने दानीएल को ख़्वाजासराओं के सरदार की नज़र में मक़्बूल — ओ — महबूब ठहराया।
10 चुनाँचे ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल से कहा, मैं अपने ख़ुदावन्द बादशाह से, जिसने तुम्हारा खाना पीना मुक़र्रर किया है डरता हूँ; तुम्हारे चेहरे उसकी नज़र में तुम्हारे हम उम्रों के चेहरों से क्यूँ ज़बून हों, और यूँ तुम मेरे सिर को बादशाह के सामने ख़तरे में डालो।
11 तब दानीएल ने दारोग़ा से जिसको ख़्वाजासराओं के सरदार ने दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह पर मुक़र्रर किया था कहा,
12 “मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि तू दस दिन तक अपने ख़ादिमों को आज़मा कर देख, और खाने को साग — पात और पीने को पानी हम को दिलवा।
13 तब हमारे चेहरे और उन जवानों के चेहरे जो शाही खाना खाते हैं, तेरे सामने देखें जाएँ फिर अपने ख़ादिमों से जो तू मुनासिब समझे वह कर।”
14 चुनाँचे उसने उनकी ये बात क़ुबूल की और दस दिनों तक उनको आज़माया।
15 और दस दिन के बाद उनके चेहरों पर उन सब जवानों के चेहरों की निस्बत जो शाही खाना खाते थे, ज़्यादा रौनक़ और ताज़गी नज़र आई।
16 तब दारोग़ा ने उनकी ख़ुराक और शराब को जो उनके लिए मुक़र्रर थी रोक दिया, और उनको साग — पात खाने को दिया।
17 तब ख़ुदा ने उन चारों जवानों को मा'रिफ़त और हर तरह की हिकमत और 'इल्म में महारत बख़्शी, और दानीएल हर तरह की रोया और ख़्वाब में साहब — ए — 'इल्म था।
18 और जब वह दिन गुज़र गए जिनके बाद बादशाह के फ़रमान के मुताबिक़ उनको हाज़िर होना था, तो ख़्वाजासराओं का सरदार उनको नबूकदनज़र के सामने ले गया।
19 और बादशाह ने उनसे बातें कीं और उनमें से दानीएल और हननियाह और मीसाएल और 'अज़रियाह की तरह कोई न था, इसलिए वह बादशाह के सामने खड़े रहने लगे।
20 और हर तरह की ख़ैरमन्दी और अक़्लमन्दी के बारे में जो कुछ बादशाह ने उनसे पूछा, उनको तमाम फ़ालगीरों और नजूमियों से जो उसके तमाम मुल्क में थे, दस दर्जा बेहतर पाया।
21 और दानीएल ख़ोरस बादशाह के पहले साल तक ज़िन्दा था।