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अल्लाह के फ़रज़ंद
1 ध्यान दें कि बाप ने हमसे कितनी मुहब्बत की है, यहाँ तक कि हम अल्लाह के फ़रज़ंद कहलाते हैं। और हम वाक़ई हैं भी। इसलिए दुनिया हमें नहीं जानती। वह तो उसे भी नहीं जानती।
2 अज़ीज़ो, अब हम अल्लाह के फ़रज़ंद हैं, और जो कुछ हम होंगे वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ है। लेकिन इतना हम जानते हैं कि जब वह ज़ाहिर हो जाएगा तो हम उस की मानिंद होंगे। क्योंकि हम उसका मुशाहदा वैसे ही करेंगे जैसा वह है।
3 जो भी मसीह में यह उम्मीद रखता है वह अपने आपको पाक-साफ़ रखता है, वैसे ही जैसा मसीह ख़ुद है।
4 जो गुनाह करता है वह शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी करता है। हाँ, गुनाह शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी ही है।
5 लेकिन आप जानते हैं कि ईसा हमारे गुनाहों को उठा ले जाने के लिए ज़ाहिर हुआ। और उसमें गुनाह नहीं है।
6 जो उसमें क़ायम रहता है वह गुनाह नहीं करता। और जो गुनाह करता रहता है न तो उसने उसे देखा है, न उसे जाना है।
7 प्यारे बच्चो, किसी को इजाज़त न दें कि वह आपको सहीह राह से हटा दे। जो रास्त काम करता है वह रास्तबाज़, हाँ मसीह जैसा रास्तबाज़ है।
8 जो गुनाह करता है वह इबलीस से है, क्योंकि इबलीस शुरू ही से गुनाह करता आया है। अल्लाह का फ़रज़ंद इसी लिए ज़ाहिर हुआ कि इबलीस का काम तबाह करे।
9 जो भी अल्लाह से पैदा होकर उसका फ़रज़ंद बन गया है वह गुनाह नहीं करेगा, क्योंकि अल्लाह की फ़ितरत उसमें रहती है। वह गुनाह कर ही नहीं सकता क्योंकि वह अल्लाह से पैदा होकर उसका फ़रज़ंद बन गया है।
10 इससे पता चलता है कि अल्लाह के फ़रज़ंद कौन हैं और इबलीस के फ़रज़ंद कौन : जो रास्त काम नहीं करता, न अपने भाई से मुहब्बत रखता है, वह अल्लाह का फ़रज़ंद नहीं है।
एक दूसरे से मुहब्बत रखना
11 क्योंकि यही वह पैग़ाम है जो आपने शुरू से सुन रखा है, कि हमें एक दूसरे से मुहब्बत रखना है।
12 क़ाबील की तरह न हों, जो इबलीस का था और जिसने अपने भाई को क़त्ल किया। और उसने उसको क़त्ल क्यों किया? इसलिए कि उसका काम बुरा था जबकि भाई का काम रास्त था।
13 चुनाँचे भाइयो, जब दुनिया आपसे नफ़रत करती है तो हैरान न हो जाएँ।
14 हम तो जानते हैं कि हम मौत से निकलकर ज़िंदगी में दाख़िल हो गए हैं। हम यह इसलिए जानते हैं कि हम अपने भाइयों से मुहब्बत रखते हैं। जो मुहब्बत नहीं रखता वह अब तक मौत की हालत में है।
15 जो भी अपने भाई से नफ़रत रखता है वह क़ातिल है। और आप जानते हैं कि जो क़ातिल है उसमें अबदी ज़िंदगी नहीं रहती।
16 इससे ही हमने मुहब्बत को जाना है कि मसीह ने हमारी ख़ातिर अपनी जान दे दी। और हमारा भी फ़र्ज़ यही है कि अपने भाइयों की ख़ातिर अपनी जान दें।
17 अगर किसी के माली हालात ठीक हों और वह अपने भाई की ज़रूरतमंद हालत को देखकर रहम न करे तो उसमें अल्लाह की मुहब्बत किस तरह क़ायम रह सकती है?
18 प्यारे बच्चो, आएँ हम अलफ़ाज़ और बातों से मुहब्बत का इज़हार न करें बल्कि हमारी मुहब्बत अमली और हक़ीक़ी हो।
अल्लाह के हुज़ूर पूरा एतमाद
19 ग़रज़ इससे हम जान लेते हैं कि हम सच्चाई की तरफ़ से हैं, और यों ही हम अपने दिल को तसल्ली दे सकते हैं
20 जब वह हमें मुजरिम ठहराता है। क्योंकि अल्लाह हमारे दिल से बड़ा है और सब कुछ जानता है।
21 और अज़ीज़ो, जब हमारा दिल हमें मुजरिम नहीं ठहराता तो हम पूरे एतमाद के साथ अल्लाह के हुज़ूर आ सकते हैं
22 और वह कुछ पाते हैं जो उससे माँगते हैं। क्योंकि हम उसके अहकाम पर चलते हैं और वही कुछ करते हैं जो उसे पसंद है।
23 और उसका यह हुक्म है कि हम उसके फ़रज़ंद ईसा मसीह के नाम पर ईमान लाकर एक दूसरे से मुहब्बत रखें, जिस तरह मसीह ने हमें हुक्म दिया था।
24 जो अल्लाह के अहकाम के ताबे रहता है वह अल्लाह में बसता है और अल्लाह उसमें। हम किस तरह जान लेते हैं कि वह हममें बसता है? उस रूह के वसीले से जो उसने हमें दिया है।